भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

छोड़ जगत झूठा सम्मान / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:31, 3 अक्टूबर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह=रजन...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

छोड़ जगत झूठा सम्मान ।
चार दिनों का तू मेहमान।।

प्रभु तो उर में करे निवास
ढूंढ़ रहा बाहर नादान।।

नश्वर तन से ममता व्यर्थ
झूठा क्यों करता अभिमान।।

बैठा है जिस तरु की डाल
काट रहा उसको अनजान।।

साथ नहीं जाती है देह
करता जिस पर बड़ा गुमान।।

अब तो मेरा तेरा छोड़
कर ले जीवन का कल्यान।।

भूलभुलैया सा संसार
भटक भटक कर देता जान।।