भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बढ़ा दी है नैया तुम्हारे सहारे / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:32, 3 अक्टूबर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह=रजन...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
बढ़ा दी है नैया तुम्हारे सहारे ।
तुम्हीं से हैं जीते तुम्हीं से हैं हारे।।
कभी भी नदी के किनारे न मिलते
मिले नैन सरिता के लेकिन किनारे।।
पलक मूँद छवि कैद कर ली जो उसकी
उमड़ने लगे आँसुओं के हैं धारे।।
ठहर जाओ प्रियतम हृदय कोठरी में
बिछा दूँ मैं शैया पुतलियों की प्यारे।।
सुनाऊँ मधुर गीत मैं धड़कनों का
नज़र से तुम्हारी नज़र जो उतारे।।
रहोगे भला कब तलक दूर हमसे
करुण मन पपीहा तुम्हें ही पुकारे।।
कठिन है बहुत जिंदगानी हमारी
हैं पथ जिंदगी के तुम्हीं ने सँवारे।।