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गौतम / संजय तिवारी

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जब तुम बुद्ध हुए
तब सोचा युद्ध भयानक है?
यशोधरा के जीवन से
उठता यह क्रोद्ध भयानक है?
तुम
आस छोड़ कर जाते भी
जाते तो क्या बच जाता
तुम्हारा जाना
हमारा जगना हो जाता
बिना युद्ध
कभी कोई
राष्ट्र भी बना है?
केवल बुद्ध होकर
धरती ने कभी
कोई
आधार गढ़ा है?
गौतम
तुम्हे तो आज भी नहीं पता
जब तुम बुद्ध हुए
उसके बाद
इस जननी ने क्या क्या झेला है?
राम और कृष्ण
के पुरुषार्थो को
यहाँ तक लाने में
कितने पापड बेला है?
मै तो हारी न थी?
न ही तुम जीते थे
एक पलायन से
सभी रीते थे
तुमने
जगत को जहा छोड़ा
वही से
ढो रही हूँ मै?
हां? गौतम
यशोधरा ही हूँ
इसीलिए
एक पलायित बुद्ध की
उस व्यापकता पर
रो रही हूँ मै?
यकीन करो
यशोधरा ही हूँ।