यहाँ कुछ भी अबुद्ध नहीं सिद्धार्थ / संजय तिवारी
न तो पार्थ से बड़ी हैं
तुम्हारी बाँहें
न हीं भीम से अधिक
तुममे है शक्ति
युधिष्ठिर की तरह
धर्मराज भी नहीं हो तुम
तुम तथागत
बुद्ध
याकि
भगवान् भी कहला चुके
सृष्टि को अपने धम्म में
मिला चुके
देखो?
वह न मिली थी? न मिलेगी
यह सृष्टि है स्वामी
यह तो हर क्षण खिलेगी
इसी में है
कुंती की कोख
और
दरूपादि की चीर
दुःशासन के हाथ
दुर्योधन का अट्टहास
पितामह भीष्म की घटाटोप चुप्पी
कौरव समाज की निर्लज्जता
पांडवो की विवशता
यह सृष्टि है स्वामी
सृष्टि
इसकी अपनी गति
अपनी ऊर्जा
अपनी विडम्बना
अपनी अपनी जीत
अपनी हार
इसे अपना सब स्वीकार है
यह जगत है नाथ
मिथ्या नहीं? मतिमान है यह
यह पलायन की वेदना में नहीं
योग की साधना में खिलता है
यहाँ जीवन है
सपने हैं
सृजन है
सबकुछ हर क्षण
नया भी और नियत भी।
यह अच्युत की च्युत गति
यह माधव की चेतना
यह केशव की कृति
यह कृष्ण की अनुभूति में
राधामय जगत है?
यहाँ जीवन भी है
रंग भी हैं
रास भी है?
रमण और रीति
परमानंद की प्रतीति
युद्ध और शान्ति में
यहाँ कुछ भी अबुद्ध नहीं सिद्धार्थ।