और तुम तथागत ही कहलाये? / संजय तिवारी
तुमने जिस पीपल तले ज्ञान पाया
वही बगल की फाल्गुनी को देखा?
अंतस्तल की गहरी धारा और
ऊपर से केवल रेत की रेखा।
यह तो जान पाते
कि जनक की ही जननी की ताप
मिथिला की ही सोंधी माटी
और भारती की
उसी कोख से आप भी आये
वह तो ऋषि होकर भी राज्य संभाल रहे थे
पर आप राजा होकर भी
बुद्ध कहलाये।
बुद्ध बन कर भी जीवन को
भ्रम से आगे नहीं समझ पाए
तुम समझ ही नहीं सके कि
खिले हुए फूल कब मुरझाये
न संस्कृति की संत्रास तोड़ सके
न आस्था का विशवास तोड़ सके
न वांग्मय के शब्द खंडित हुए
न सृष्टि का संवाद तोड़ सके
न आशा मिटी
न तृष्णा घटी
न ज्ञान की गंगा का प्रवाह रुका
न शास्वत मूल्यों का माथा झुका
कुछ पल की बदली बन छा गये थे
तुम बहुत प्यासे थे
मगध में ही कुछ पा गए थे।
अमृत नहीं?
तुम्हारी ही बदली की लड़ी थी
तुम्हारी प्यास बुझाने के लिए ही
पड़ी थी।
आर्य? आर्यावर्त में क्या नहीं भाया
तुमने यही वह सब क्यों नहीं पाया?
सिद्धाश्रम
नन्दनवन
पंचवटी
नंदकानन
किष्किंधा से लेकर
लंका तक
सब जीत कर भी राम ने छोड़ा था
तुमने भारत से क्यों मुँह मोड़ा था?
अविजित राम को
अयोध्या ही भायी थी
तुम्हें
अपनी जन्मभूमि की
याद भी न आयी थी?
सच बताना गौतम
राम से बड़ा तो नहीं बन पाए
वह मर्यादा पुरुषोत्तम बने
और तुम
तथागत ही कहलाये?