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सृष्टि का पर्याय पलायन नहीं है / संजय तिवारी

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विभाण्डक का नाम सुना है?
उनके तप को कभी गुना है?
नहीं ना
तो सुनो
कठोर तप के प्रमाण थे
योग और साधना के परिमाण थे
अपने पुत्र को विषयो से मुक्त करने का
विभाण्डक ने लिया संकल्प
बनाया एक प्रकल्प
उसी में पालने लगे
श्रृंगी को अपने योग में
ढालने लगे
बनाना चाहते थे विषय मुक्त
योग और साधना से युक्त
पर चूक गए
एक राजा की गणिकाओं से हार गए
श्रृंगी को जागतिक बना कर तार गए
बहुत लम्बी है श्रृंगी के विवाह की यह कथा
बस इतना जानो
पलायन की शक्ति है सर्वथा व्यथा
राम की बहन शांता
सुमित्रा की पुत्री
उसे दशरथ ने दिया था

अंग देश के राजा

रोमपाद को गोद
इस दत्तक बेटी ने राज्य से मिटाया था अकाल
साधक श्रृंगी भी हो गए निहाल
तुम श्रृंगी से बड़े तो नहीं हो सके
साधक जैसे खड़े भी नहीं हो सके
विभाण्डक को भी झुकना पड़ा था
जगत की गति के आगे रुकना पड़ा था
सोचो
वे गणिकाएं भी तो थीं बड़ी महान
राज्य की रक्षा के लिए
किया श्रृंगी का अपहरण
और
अकाल से बचा लिया जहान
इसी श्रृंगी ने
कराया था पुत्र कामेष्टि यज्ञ
और अवतरण हुआ राम का
तुम्ही बताओ
कौन कसके काम का
तुम्हारे धम्म में आम्रपाली ने क्या दिया
तुम्हारे आवरण की लाली ने क्या दिया
न विभाण्डक बन सके
न श्रृंगी सा तपस्वी
कैसे तुम्हें कह दू यशस्वी?
तुम्हारे यश में कोई गायन नहीं है
बुद्ध
यह सृष्टि संयोग की शक्ति है
इसका पर्याय पलायन नहीं है।