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बहुत से प्रश्न हैं जिनसे अकेले जूझ रही हूँ / संजय तिवारी

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यदि तुम्हें बनना ही था
 भगवान्
तो जी लेते यह जिंदगी?
पहले बन कर एक इंसान
अपने आप से
कभी क्यों नहीं किया यह प्रश्न
कैसा है यह जश्न
कि वैराग्य
कि नैराश्य
कि आश्वस्ति
कि निष्पत्ति
कि अनुराग
कि अतिराग
कि अभिव्यक्ति
कि अनुरक्ति
कि आसक्ति
कि अभिवयक्ति
कि अतिरक्ति
या कि अथाह?
अविचलित भक्ति
भगवान् से भी बड़ी
भक्ति होती है
यही जीवन की शक्ति होती है
इतनी बात भी तुम समझ नहीं पाए?
बिना वजह भगवान् भी कहलाये?
आखिर तुमने कौन सा सत्व पाया था?
तुमने किस राम तत्व को अपनाया था?
बिना मनुष्य बने
खुद को बना दिया भगवान्
जगत को भ्रमित कर
नहीं कर सके कोई संधान
तुमसे पहले किसी ने
नहीं की थी यह हिमाकत
मनुष्य में कभी नहीं थी
ऐसी ताकत
लेकिन तुमने नया खेल खेला
लगा दिया भगवानो का मेला
यह भावना कितनी पातक है?
सृष्टि के लिए यह कितनी घातक है?
यह राम की धरती है
कृष्ण की वाचक है
दोनों में प्रज्जवलित
ईश तत्व की याचक है
दोनों ही पहले बने थे पूर्ण इंसान
जब ब्रह्मतत्व फूटा
तब
इस सृष्टि ने घोषित किया भगवान्
वे स्वयंभू नहीं थे
ना ही किसी ने किया उनका निर्माण
तुम्हारी तरह नहीं था उनका निर्वाण
गौतम
बहुत से प्रश्न हैं
जिनसे अकेले जूझ रही हूँ
हां? मैं यशोधरा ही हूँ?
तुम्ही से पूछ रही हूँ।