भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रेम कविता / नंदा पाण्डेय

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:29, 6 नवम्बर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नंदा पाण्डेय |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

क्या हो गया है
इन दिनों मेरी 'कलम' को
डर लगता है
कहीं 'इश्क' तो नहीं हो गया
मेरी 'कलम' को

कागज देखते ही झूमने लगती है
कभी दुनिया भर का प्यार उमड़ आता है
उसके मन में
तो कभी नफरत

कभी प्रेम से विभोर हो गाने लगती है
तो कभी वियोग में रोती है
कभी ईर्ष्या लिखती तो कभी
डाह में जलती है

लिखते हुए उसे खुद भी पता नहीं होता
आखिर लिखना क्या चाहती है
और जब कभी रूठती है तो
कई कई दिनों तक चुपचाप बिलखती रहती है

डरती हुँ कहीं सचमुच में 'इश्क' तो नहीं हो गया मेरी 'कलम' को

पल-पल जलाती है खुद को
अपने मन की हर परत खोल कर
उटपटांग लिखने बैठ जाती है
न जाने किस अपमान की लपटों में दहक रही है मेरी 'कलम' इन दिनों !

कोशिस कर रही हूँ
प्रतिक्षण आहूती दे रही कलम के
अंतर्मन को पढ़ने की और
जी रही हूँ इसी उम्मीद में की
असंभव कुछ भी नहीं
बेशक टुकड़े-टुकड़े हृदय के अवशेषों के साथ ही सही पर
एक बार फिर से
लिखेगी मेरी 'कलम'
 "प्रेम-कविता" 'इश्क' में होते हुए!