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मन में ऐसी पीर उठी / दरवेश भारती
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प्राणों को झकझोर गयी जो मन में ऐसी पीर उठी।
तेरा अनुपम आनन देखे,
यों तो वर्षों बीत गये हैं।
इस असह्य,दुखपूर्ण काल में,
चक्षु निरन्तर रीत गये हैं।
लुप्त हृदय से हुई वेदना, लुप्त हृदय से हुई ख़ुशी।
प्राणों को झकझोर गयी जो मन में ऐसी पीर उठी॥
आज अचानक पाती पाकर,
हृदय स्तब्ध, आश्चर्यचकित है।
अब भी तेरी स्मृति-चूनर पर,
नखत-सदृश वह प्रेम खचित है।
लो,फिर-से है जाग उठी ये पुनर्मिलन की चाह नयी।
प्राणों को झकझोर गयी जो मन में ऐसी पीर उठी॥
इक-दूजे का हो जाने को,
कितने स्वप्न सँजोये हमने।
बीज प्रेम के कैसे थे वो,
कहाँ उगे जो बोये हमने।
यही सोचते नयनों में महसूस हुई है आज नमी।
प्राणों को झकझोर गयी जो मन में ऐसी पीर उठी॥