भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दो बूँदें / जयशंकर प्रसाद
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:38, 19 दिसम्बर 2018 का अवतरण
शरद का सुंदर नीलाकाश
निशा निखरी, था निर्मल हास
बह रही छाया पथ में स्वच्छ
सुधा सरिता लेती उच्छ्वास
पुलक कर लगी देखने धरा
प्रकृति भी सकी न आँखें मूँद
सु शीतलकारी शशि आया
सुधा की मनो बड़ी सी बूँद!