भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
खोये-खोये लगते हो, ठीक-ठाक तो हो / हस्तीमल 'हस्ती'
Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:52, 25 जनवरी 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हस्तीमल 'हस्ती' |संग्रह=प्यार का...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
खोये-खोये लगते हो, ठीक-ठाक तो हो
अपने में ही रहते हो, ठीक-ठाक तो हो
मैख़ानों की जान हुआ करते थे तुम तो
अब मंदिर में दिखते हो, ठीक-ठाक तो हो
पहले कितनी चाहत से मिलते थे तुम यार
अब कतराये फिरते हो, ठीक-ठाक तो हो
इस युग में भी प्यार व़फा और अपनेपन के
सपने देखा करते हो, ठीक-ठाक तो हो
कुछ भी ठीक नहीं लगता फिर भी `हस्ती' तुम
ठीक हूँ मैं तो कहते हो, ठीक-ठाक तो हो