भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तसलसुल के साथ / शहरयार
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:28, 31 जुलाई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शहरयार |संग्रह=शाम होने वाली है / शहरयार }} वह, उधर सामने ...)
वह, उधर सामने बबूल तले
इक परछाईं और इक साया
अपने जिस्मों को याद करते हैं
और सरगोशियों की ज़र्बों से
इक तसलसुल के साथ वज्द में हैं।