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चलीं अपना गाँव / हरेश्वर राय

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चलीं अपना गाँव
तनि सा घूम आईं I

पत्थल के एह नगरिया में
पथरा गइली सन आँख,
टुटल डाढ़ अस गिरल बानी
कटल परल मोर पाँख I

लागल बा चोट कुठाँव
त कइसे धूम मचाईं I

खिसियाइल दुपहरिया में
तिल-तिल के तन जरता,
नोनिआइल देवालिन में
नोनी जस मन झरता I

ओहिजे मिली नीम छाँव
तनि-सा झूम आईं I

छाँह नदारद ठाँह नदारद
माहुर उगलत नल,
का जाने कइसन बा आपन
आवेवाला कल I

दादी अम्मा के पाँव
तनि-सा चूम आईं I