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कविता- अकिंचन / कविता भट्ट
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होता है जब-जब
भावों का मर्दन
होता है तब-तब
कविता का नर्तन।
तेरे अपने होंगे सच
कविता- अकिंचन
बैठी हुई देहरी पर
खटकाती आतुर मन
उसके अपने ही सच
और अपने ही क्रन्दन
तभी होते है संतुष्ट
उपहारों में सूनेपन
बजती रही साँकल
भाया न अभिरंजन
बोलती रही वह सच
झुठला दी गई सजन...