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साधो, खांसि रहे ककुआ / सुशील सिद्धार्थ
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साधो, खांसि रहे ककुआ।
गदहा पांवैं रोजु पंजीरी कुतवा मालपुआ॥
उइ बिरवा सब कटिगे जिनते चुअति रहै महुआ।
हुआं सियार कबड्डी ख्यालैं ब्वालैं हुआ-हुआ॥
देखा देखी देसु बदलिगा ल्वाग भये बबुआ।
मेहनति देखि कै र्वांवां परचैं ख्यालैं छुई छुआ॥
यू बजार कुछु अइस फैलिगा चंट भये सिधुआ।
याक राह पर चचा भतीजा बिटिया औरु बुआ॥
संत भये बैपारी ब्यांचै पुरिया म बांधि दुआ।
दुनिया भरिकै किरला द्याखै पिंजरेम बैठ सुआ॥