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साधो, को की ते बतलाय / सुशील सिद्धार्थ

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साधो, को की ते बतलाय।
जब्बै द्याखौ बंद केंवारा, सांसौ तक न समाय॥

डगर डगर बटमार बसे हैं मानौ भूत बलाय।
पिन्डु रोगु ह्वैगै आजादी सांचु न कहूं सुनाय॥

ख्यात पात औ बिया कहूं ना अमरीका लै जाय।
वर्ल्ड बैंक सबु नाचु नचावै यहिका कौनु उपाय॥

धुआं जइसि मड़राय रही है दुखियन केरी हाय।
समझैया होई तौ समझी हम समझाइति गाय॥

नये भोर कै पहिलि किरनिया साइति परै देखाय।
ई उम्मीदन आपन जियरा राखिति हम बेलमाय॥