अकाल गीत / रामकृष्ण
जिनगी के ईरे-तीरे पसरल विपतिआ से लोरे-लोरे-
कानइ टुटली मड़इआ॥
चढ़ते असढ़वा फुनगलइ असरवा
काने-काने हो गेलइ अनोर।
कोठिआ कोठिलवा में जोगल परान-धान
धरती के बनलइ पटोर॥
सवना के बदरा निसुक भेलइ अखरा से कोरे-कोर -
मारइ जेठ के लहरिआ॥
मटिआ के नेहिआ में कनसल देहिआ
ताना-गाभी मारे कनसार।
अइसन सूरुज देवा बैरवा बेसाहलन
हहर उठल संसार।
टोहा अइसन बुतरू निअन खाढ़ मोरिआ के पोरे-पोरे -
जारइ काँच रे उमरिआ॥
अहरा, पोखर, पइन, नदिआ हकास गेल
कुइआँ के पनिआ पतला।
भादो के महिनमा में चरकाबिदोर घाम
अइसन न कि पलटे अकाल॥
खेतवा के टोपरा में टोटमा गे गोइआ जे लोगे-जोगे -
कएलक डइनी बदरिआ॥
पुरवा पूरुब गेल उतरा उतरलइ
हथिओ के चढ़ल सिंगार।
अबकी न अबकी के असरा बिसरलइ
चितरो के उपहल पिआर।
नून-भात पनिआ ला ठुनकइ बलकवा जे भोरे-भोरे -
उ का बुझतइ बिपतिआ॥