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उनका से सट जइहें / सतीश मिश्रा

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सोने चोंच मढैबउ सुगना उनकर अँगना जो!
हमरे किरिआ, हमरे आँखे टुसुर-टुसुर जा रो!

एतना रो कि तोर लोर उनकर मन-खेत पटा दे
हमर प्रेम के पसरे पौधा, खेर-पोआर हटा दे
हम्मर-उनकर मिलन करा के दूध-मलइया खो!
हमरे किरिआ, हमरे आँखे टुसुर-टुसुर जा रो!

जैबे तखनी अगर नींद में होएता, तो न जगइहें
का जानीं हमरे सपना में होएता, तूँ रुक जइहें
मगर तबीयत नीक-जबुन बुझ लीहें माथा टो!
हमरे किरिआ, हमरे आँखे टुसुर-टुसुर जा रो!

अपन पाँख के हम्मर अंगुरी थोड़े देर समझ के
सुघरइहें तूँ देह समुच्चे जहाँ-तहाँ बझ-बझ के
लोरे-झोरे पलक देखइहें, पलक उठौतन तो!
हमरे किरिआ, हमरे आँखे टुसुर-टुसुर जा रो!

कारन बतवे में रोवे के, फूँट निअन फट जइहें
अपन देह के हम्मर समझित उनका से सट जइहें
अफर के कहिहें-‘अरे बेदरदी! अब तो घरवा जो!’
हमरे किरिआ, हमरे आँखे टुसुर-टुसुर जा रो!