भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

किसलिये गुजरा ज़माना चाहिये / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ४ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:50, 12 मार्च 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCa...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

किसलिए गुजरा जमाना चाहिए.
जो गया उसको भुलाना चाहिए॥

यों मिला कुछ देर का है साथ पर
अब इसे भी आजमाना चाहिए॥

है बहुत मुश्किल भलाई की डगर
पर कदम सब को बढ़ाना चाहिए॥

कृष्ण की थी बाँसुरी गूँजी जहाँ
वहीं अपना आशियाना चाहिए॥

कर रही यमुना विनय घनश्याम से
फिर तुम्हें गोकुल बसाना चाहिए॥

कालियादह बन गयी सारी नदी
स्वच्छ नीरा फिर बनाना चाहिए॥

घुल गया वातावरण में है जहर
अब प्रकृति को फिर बचाना चाहिए॥