भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ज़िन्दगी दर्द का समंदर है / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ४ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:22, 18 मार्च 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह=शाम...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
जिंदगी दर्द का समंदर है
एक दुनियाँ-सी इसके अंदर है
गहरे उतरे तो जान पाओगे
है कहाँ गिरि औ कहाँ कन्दर है
जिसने औरों की गर्दनें काटीं
बस वही आज का सिकन्दर है
जिसको पलकों पर सुलाये रक्खा
यूँ तो सपना है मगर सुंदर है
झील हूँ मैं तो एक उल्फ़त की
वो मगर रेत का बवंडर है