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सिन्दूरी सबेरा / जगदीश गुप्त

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पौ फटी,
चुपचाप काले स्याह भँवराले अन्धेरे की घनी चादर हटी ।

मख़रूर आँखों में गई भर जोत
जब फूटा सुनहला सोत
सिन्दूरी सबेरा बादलों की सैंकड़ों स्लेटी तहों को
चीरकर इस भाँति उग आया
कि जैसे स्नेह से भर जाय मन की हर सतह
हर वासना जैसे सुहागन बन उठे
पुर जाय हर सीमान्त कुंकुम की सुलगती उर्मियों से बेहतर ।

चुपचाप काले स्याह भँवराले अन्धेरे की घनी चादर हटी,
पौ फटी ।