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विहान / अंतर्यात्रा / परंतप मिश्र

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सुदूर क्षितिज के पास
जहाँ उन्नत आकाश झुक कर
विस्तृत धरती का आँचल स्पर्श करता है
पूर्व दिशा से निकला सूर्य
अब पश्चिम दिशा में श्रमशान्त होगा
दिनभर की यात्रा पूर्ण कर

अपनी किरणों की लालिमा से
समस्त जगत को आनंदित करता हुआ
सूचित कर देता है सभी को
आज के लिए विदा का समय है।

उत्सुकता से प्रतीक्षारत संध्या सुन्दरी
पूर्ण शृंगार सुशोभित मिलन को उद्यत है
सागर, नदियों, प्रपात और झीलों के
हरे, नीले, शुभ्र और श्वेत बहते जल
सूर्य की पीली रश्मियों की अंतिम स्पर्श से
मदहोश होकर स्वर्णिम हो चलें हैं

पेड़ पौधे और लाताएँ अलसा से गए हैं
दूर देश में फैले पक्षी
अपने नीड़ की ओर लौट चले हैं
लहरों के नर्तन एवं संगीत के साथ
नीरवता को आत्मसात् करते हुए

नदी के दूसरे छोर पर कोई गीत गाता है
नवयौवना संध्या सुन्दरी अभिमंत्रित
सूर्य को निहारते हुए निःशब्द
अहा ! मधुर यह सांध्य वेला
संध्या सुन्दरी के आवाहन पर विश्रांत सूर्य
रजनी की गोद में शयन करेगा

कल पुनः नव रश्मियों के रथ पर सवार होकर
इस विश्व को नयी उर्जा से आलोकित करेगा
स्वागत है नव विहान
स्वागत।