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मैं तेरे सपनों में आऊँ / अंतर्यात्रा / परंतप मिश्र

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सम्बन्धों की भँवर जाल में,
तुमको मैं किस नाम बुलाऊँ
मुझको जब भी याद करे तू,
मैं तेरे सपनों में आऊँ...
मैं तेरे सपनों में आऊँ...

दुनिया की आपा - धापी में,
याद करूँ, कुछ भूल न जाऊँ
मिलने और बिछड़ने जैसी-
रीत न फिर से अब दुहराऊँ
मैं तेरे सपनों में आऊँ...

पलते गीत मेरे उर में जो,
तेरे होठों से जब, गाऊँ
शब्द-शब्द हो जल की धारा
तेरी आँखों से बह जाऊँ
मैं तेरे सपनों में आऊँ...

जीवन के इस कठिन डगर में
पथिक तुझी को साथ मैं पाऊँ
स्वप्नों की है रीत निराली
तुझमें जागूँ, जब सो जाऊँ
मैं तेरे सपनों में आऊँ...

पीर हृदय की मेरी भोली
तेरी धड़कन से बँध जाऊँ
आना-जाना लगे है फेरा
खुद को खोकर तुझमें पाऊँ
मैं तेरे सपनों में आऊँ...

कौन तके दिनकर का फेरा
तेरी गोद में अब सो जाऊँ
हृदय दीप से अंतिम अर्चन
शायद फिर मैं जाग न पाऊँ
मैं तेरे सपनों में आऊँ...