भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
करूँ आज कैसे विदाई तुम्हारी / मृदुला झा
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:07, 30 अप्रैल 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मृदुला झा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGhazal...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
कि डसने लगी है जुदाई तुम्हारी।
अगरचे दिये हैं कई जख्म तुमने,
करूँ कैसे मैं जग हँसाई तुम्हारी।
कहूँ हाल अपना मैं किस-किस से जाकर,
कि खलने लगी बेवफ़ाई तुम्हारी।
लगी हथकड़ी जो मुहब्बत की तुमको,
तो होगी कभी क्या रिहाई तुम्हारी।
बहारों का देखा जो दिलकश नज़ारा,
रुलाने लगी आशनाई तुम्हारी।