भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जिये हम बहुत चाहतों के लिए / मृदुला झा
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:12, 30 अप्रैल 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मृदुला झा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGhazal...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
कभी तो जियें आहतों के लिए।
यूँ ही प्यार की बात करते रहे,
लड़े क्यों सदा सरहदों के लिए।
अगर जीत लें क्रोध को प्यार से,
जगह ही नहीं दुश्मनों के लिए।
खली है सदा बेवफाई तेरी,
जिये जा रहे दोस्तों के लिए।
जुदाई की बातें न करना कभी,
करें काम हम बेकसों के लिए।