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ज़िन्दगी से बेखबर है आदमी / मृदुला झा
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आज कितना दर-ब-दर है आदमी।
कत्ल पर भी उफ तलक करता नहीं,
हो गया अब बेअसर है आदमी।
ग़म छुपाने के हज़ारों रास्ते,
जा रहा जाने किधर है आदमी।
मोहतरम कहने लगा शैतान को,
सोच में बिल्कुल शिफर है आदमी।
बेरुखी जब मिल रही सौगात में,
ढूंढ़ता क्यों हम सफर है आदमी।