भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
घंगतोळ् / धनेश कोठारी
Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:39, 2 मई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धनेश कोठारी |अनुवादक= |संग्रह=ज्य...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
तू हैंसदी छैं/त
बैम नि होंद
तू बच्योंदी छैं/त
आखर नि लुकदा
तू हिटदी छैं/त
बाटा नि रुकदा
तू मलक्दी छैं/त
द्योर नि गगड़ान्द
तू थौ बिसौंदी/त
ज्यू नि थकदु
तु चखन्यों कर्दी/त
गाळ् नि होंदी
तू ह्यर्दी छैं/त
हाळ् नि होंदी
तू बर्खदी बि/त
खाळ् नि होंदी
तू चुलख्यों चड़दी/त
उकाळ् नि होंदी
पण....
भैर ह्यर्दी/त
भितर नि रौंदी
भितर बैठदी/त
घंगतोळ् होंद