Last modified on 4 मई 2019, at 20:33

मन का दर्पण दरक गया / मृदुला झा

Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:33, 4 मई 2019 का अवतरण (Rahul Shivay ने मन का दर्पण दरक गयाए / मृदुला झा पृष्ठ मन का दर्पण दरक गया / मृदुला झा पर स्थानांतरित कि...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

देख मुसीबत खिसक गया।

सतरंगी जीवन में क्योंए
शह का घोड़ा बिदक गया।

लम्हों की तो खबर नहींए
युग गिनने में अटक गया।

मंज़िल की जानिब था पर
राहों में ही भटक गया।

कतरा.कतरा पी कर वहए
ग़म का दरिया गटक गया।

तौबा उसका क्या कहनाए
मदिरा पीकर बहक गया।

मेरा इसमें दोष नहीं
सर से पल्लू सरक गया।