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हादसों का शहर है सम्भल जाइए / मृदुला झा
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कौन कब किस डगर है सम्भल जाइए।
नेक रस्ते पे चलते हुए आजकल,
आदमी दर-ब-दर है सम्भल जाइये।
चाहे कहिये सड़क इसको या इक नदी,
इस कदर रह गुजर है सम्भल जाइये।
दर्द कितने दिये हैं उसे आपने,
यह शराफत नहीं है सम्भल जाइये।
जान सस्ती मगर चीज महंगी यहाँ,
बाकी सब बेअसर है सम्भल जाइए।