भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ज़िन्दगी ने खुद सँवारा है मुझे / मृदुला झा

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:36, 4 मई 2019 का अवतरण (Rahul Shivay ने ज़िन्दगी ने खुद सँवारा है मुझेए / मृदुला झा पृष्ठ [[ज़िन्दगी ने खुद सँवारा है मुझे / मृदुल...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हर बशर बेहद ही प्यारा है मुझे।

छंद, लय, अनुप्रास बन-बन कर कभी,
और लोरी बन दुलारा है मुझे।

बुजदिलों की भाँति रोता था कभी,
राहे-हिम्मत ने उबारा है मुझे।

जा फँसा था ज़ालिमों की फांस में,
मुक्ति का दे मंत्र तारा है मुझे।

भूल पाऊँगी नहीं इस स्नेह को,
थपकियाँ दे खुद दुलारा है मुझे।