भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दीप मैं तिमिर निशा जला करूँ / गीत गुंजन / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:53, 11 मई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह=गीत...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दीप मैं तिमिर निशा जला करूँ।

साधना कि आस्था महान हो ,
अर्चना कि योजना समान हो।
मैं जलूँ अकंप इस निशीथ में ,
धूप का कि चंद्रिका का दान हो।

बूँद बनूँ नेह अश्रु में ढला करूँ।
दीप मैं तिमिर निशा जला करूँ॥

श्वास संचरण करे समाधि में ,
या कि आह घुटे आधि व्याधि में।
मैं सदा सुरभि सुगंध में बसूँ ,
ज्योति भरूँ व्यक्त की उपाधि में।

साँझ में घनान्धकार में पला करूँ।
दीप मैं तिमिर निशा जला करूँ॥

बाहुओं में बांध लूँ अकाश को ,
बांध लूँ दिशा धरा के व्यास को।
अंजली भरी किरण किरण बिखेर दूँ
नैन लें निहार आस पास को।

मैं जियूँ मिटूँ पलों के पथ चला करूँ।
दीप मैं तिमिर निशा जला करूँ॥