भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लोग हैं बेशर्म / रणजीत
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:51, 16 मई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रणजीत |अनुवादक= |संग्रह=बिगड़ती ह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
लोग हैं बेशर्म, बोलो क्या करें?
कुटिल इनके कर्म, बोलो क्या करें?
द्वेष इनका देश है और घृणा इनकी जाति है
ढोंग इनका धर्म, बोलो क्या करें?
चीथ कर मासूम हिरणों को अरे ये भेड़िये
ओढ़ते मृगचर्म, बोलो क्या करें?
ज़ुल्म का भांडा लबालब भर चुका
और लोहा गर्म, बोलो क्या करें?