तुमने सुना
दर्शन कहता है
वेग गर बाँध लिया जाए
तो मुक्त करता है,
नदी की हरहराती प्यास
कब तक समन्दर ढूँढती,
शिव नहीं हूँ
इसलिए अंचभित हूँ जानकर
कि विष बूँद बूँद उतरे तो
पोषक बन जाता है,
आँखों में ठहरे हैं थार,
क्या मल सकते हो
तन के गीलेपन पर
मन के मसान की राख,
हर नीलकंठ का बनना परमार्थ नहीं
रोम रोम तक कुछ टपकता है।