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तुम्हारा शरीर है यह / शलभ श्रीराम सिंह
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यह तुम्हारा शरीर है मेरे शरीर में समाता हुआ
आता हुआ आईने के सामने
प्यार का मतलब बताता हुआ पूरे यक़ीन के साथ ।
यह तुम्हारा हाथ मेरे हाथ में बदलता हुआ
निकलता हुआ आस्तीन से बाहर
चलता हुआ भूख और प्यास के ख़िलाफ़ ।
यह तुम्हारी आँख है मेरी आँख में ढलती हुई
मचलती हुई देखने को पूरी दुनिया
सम्भलती हुई किसी भी दृश्य का मुकाबला करने के लिए ।
यह तुम्हारा मन है मेरे मन को जागता हुआ
बजाता हुआ मेरी उम्मीद को बाँसुरी की तरह
सजाता हुआ बच्चे की तरह मेरे एक-एक सपने को ।
तुम्हारा शरीर है यह मेरे शरीर में समाता हुआ
रचनाकाल : 1992 विदिशा