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विजेता हत्यारा / मदन कश्यप
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जब पहली बार उसने हमारे एक पड़ोसी को मारा था
तब बेहद ग़ुस्सा आया था ।
हमने हत्यारे के ख़िलाफ़ आवाज़ें बुलन्द की थीं
और जुलूस भी निकाले थे ।
दूसरी बार जब एक और पड़ोसी मारा गया
तब मैं गुमसुम-सा हो गया था ।
घर दफ़्तर सड़क हर जगह असहाय और अकेला ।
फिर जब हमारे तीन-चार पड़ोसी एक साथ मारे गए
तब हम हत्यारों की जयकार करते हुए सड़कों पर उतर आए ।
अब मैं अकेला नहीं था ।असहाय भी नहीं ।
पूरी भीड़ थी साथ ।
हत्यारा अब विजेता बन चुका था । हमारा नायक !
(2009)