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न´ कोय न´ / जयराम दरवेशपुरी
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हवा बताश
अब कुछ खास चाम रहल हे
हिया में हियावऽ
बिखधर नाग पल रहल हे
आगू-पीछू
पीछू-आगू
दंश भरल दिल में
अलाव जल रहल हे
कइसे कहूँ
सुनतइ के अखनी तऽ
अलग-अलग भाव चल रहल हे
तनियें गो तितकी
सब के जोर
इहाँ तऽ अप्पन-अप्पन
दावा चल रहल हे
कोय लूटे एन्ने
कोय बटोरे ओन्ने
सब लुटेरबन के अखनी
ऊँचगर भाव चल रहल हे
भरम में अब
न´ कोय भरमऽ
उलटी डेंगी देखऽ
नाव चल रहल हे।