भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तोहरे दंह पसेना रांगल / जयराम दरवेशपुरी
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:34, 10 जून 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जयराम दरवेशपुरी |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
जय-जय मजदुर
जय किसान
जय-जय भारत
के नवजवान
तोरे देह पसेना रांगल
ई मटिया सोना उगले
जन जन ले संदेश सबेरे
आ-आ नित दिन उझले
तोहरे पर सोभऽ हे धरती
के सुनहर मुसकान
तोहरे काया जुलुम जोर से
हँसते रोज भिड़ऽ हे
देश के खुशहाली ले तोहरे
कतरा खून गिरऽ हे
तोरा देख दुश्मन के सीमा
पर निकलऽ हे जान
देशवा के तेहवार तूही हा
जग के पालनहार
तोहरे तप फल मुट्ठी भर के
इहाँ बनल बहार
चेत रहल हर खेत आज
अउ उमड़ रहल खरिहान