भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सब ले इंसाफ हो / जयराम दरवेशपुरी
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:38, 10 जून 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जयराम दरवेशपुरी |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
सब के मंगल कामना
ई नया साल के
दूर कर दा सब मिल जुल
अन्हर जाल के
कलमश सब धो दा
चल पावन गंगा में
कसम खा सब चढ़
कंचनजंघा में
दिव्य ज्ञान एकता के
ले मशाल के
जागऽ सब गाँव शहर
जगवे समइया
धो दा मन मैल सभे
देशवा के भइया
समय देख रूप धरऽ
महाकाल के
अपनावऽ मिल्लत
दुश्मनी साफ हो
फहरे परचम
सब ले इंसाफ हो
भेद खोलऽ
खूंखार बाघ छाल के।