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शीतलहर के धात हे / जयराम दरवेशपुरी
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नया बरिस के नयका बादर
के सिहरल सौगात हे
पछिया के सरगम पर सगरे
शीतलहर के धात हे
सिहर रहल हे देह समुच्चे
धरती कनकन सोरा
तरे तोसक ऊपर कम्मल
कनतउ धूरा जोरा सप्-सप् हावा
सोध रहल हे ठंढ बड़ी दिन रात हे
केकरे चारा चले न तनिको
ई पछिया लफार में
बाले बच्चे घुकरी देले
लोघड़ल हे पोवार में
भरल बोरसी बनिया जाहे
कपकप्पी हे गात में
खट्-खट् दाँत बजड़ रहलो हे
कनकन्नी हे जोर के
बूढ़ा-बूढ़ी कत्ते गेला
गंगा जी के कोर में
यम सन जाड़ा पसरि गेल हे
ले चलइ के घात में
परकिरती के कोप छहाछह
घर के घर उजाड़ रहल हे
अलुआ सरसो अउ मसुरी पर
कोहरा पाला मार रहल हे
निमरा के गर्दन पर धइले
अंगद सन ई लात हे।