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गोवाह न मिलतो / जयराम दरवेशपुरी
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जब ले तू न´ देह चमकइवा
तबले तोहरा बाह न मिलतो
ई मुँहनुकवा के चादर तर
एक्को इंची राह न मिलतो
भोरे आके लाल किरिनियाँ
आँख तोहर खोलावऽ हो
चमकइ के संदेशा तोहर
माथा में सुलगावऽ हो
गद्दी पर अब
एक्को पट्टी थाह न मिलतो
डबेढ़बाज के सरकस पर
सुसताना खोवारी हे
सिहरी तोड़िके ताकऽ अभियो
कजा तलुक तोर आरी हो
समय हेरइला पछतइला पर
एक्को घोंटी चाह नऽ मिलतो
धुरफन्दी केफोटू घर-घर
बुल्लऽ हो वन के वानर
आँख अपन छुपा के बड़गो
बनि जाहो चौपट आन्हर
करऽ होश बरहरूपिया के
पीछू पग गोवाह न मिलगे।