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तनवा जब सब / जयराम दरवेशपुरी

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आज अपन रूख बदल रहल हे बर पीपर के घनगर छाँव
बनल तमाशा आज अकरखन ई हम्मर निम्मन सन गाँव

बदलल हे बड़का डेवढ़ी के सब बुतरून के चाल
सोंचइ वाला कोय न´ रहलइ सूना हइ चौपाल
हुक्का गुड़गूड़ी तक चुप हे चालू बोतल जाम

बिन पीले एक्को गो न´ अब चौपाल में बइठऽ हइ
सब कू बूझऽ तार चोप के जीरो जइसन अइंठल हइ
निमरा के मउगी के बूझइ भउजी नोचइ चाम

चाँय चुगुल सन चसकल छउड़न धइलक नया रेवाज
काहे ले केकरा के सुनतइ बड़का बनल परवाज
नाम खिड़ल हइ अखनी एकर
जानइ जिला तमाम

केकरा कही के सुनत गन दैवे सभे सम्हारल
जेकरा ताकूं सब एक्के रंग दीदा धोल खंगारल
तनवा जब सब तब्बे फइलत इंजोरिया ठामे-ठाम।