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निरवन करबइ कांटा-कूसा / जयराम दरवेशपुरी
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घेरले कहाकट अन्हरिया
लइबइ घर-घर नया इंजोरिया
उड़ गेल होस हवास अउ निनियाँ
रतिया भूखल हलिअइ ना!
मर-मर खेत कमइलूं सब दिन
एक्को तिल न´ मिलल अराम
घाम पसेना में लथपथ हे
डूबल हलिअइ ना
माथा धइले हल सिधमानी
बुतरून भूखल करइ अनोर
झूठ-मूठ बहलावइत रहलूं
भूलल हलिअइ ना
पेट जरे हे ओक्कर जे हे
दुनिया के मुस्कान
ओकरे पर हे गाज गिरावे
चूकल हलिअइ ना
अब धधकऽ हे मगज इंगोरा
फड़के बहियाँ ना
निमखन करबइ कांटा कूसा
सूतल हलिअइ ना।