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औरत और खिड़की / सुधा चौरसिया

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शायद खिड़की और
औरत का रिश्ता
बहुत पुराना है
उतना ही
जितना औरत और
मर्द का

बचपन से जवानी तक
खिड़कियों से ताकना,
ससुराल में
खिड़की के पल्ले को
थोड़ा टेढ़ा कर झाँकना
खिड़कियों से
ताल-मेल बैठाती
ये औरतें
कब खिड़की से कूद
मांस और कसाईयों की
पगडंडी पर दौड़ पड़ी
पता ही नहीं चला

अपने वजूद की
तड़प के साथ
अपनी धरती
अपना आकाश पाने
इन पगडंडियों से ही तो जाना है...