भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हम हसुआ धार / जयराम दरवेशपुरी

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:07, 11 जून 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जयराम दरवेशपुरी |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जगमग जिनगी के लुरठल हम तार ही
खेती के धंधा हे से से लाचार ही

जेठ दुपहरिया में देहिया जरावऽ ही
मटिया के जोत-कोड़ रंगोली सजावऽ ही
सब्भे के जिनगी के हमहीं आधार ही

मांड़ऽ नियन अँखिया के लोर दम पसावऽ ही
मेहनत के मोती हम औघड़ लुटावऽ ही
तइयो देह नंगा हमहीं उघार ही

झेलऽ ही लंद-फंद मीठ जहर बोली
तइरे करेजा में मार रहल गोली
ठहरऽ ने, तोहरा ले हम हँसुआ धार ही

हम्मर कमइयां के दाम तूं लगावऽ हा
हमरे उपजइलका पर मोंछ के पियावऽ हा
गफलत में गवां देलूं चीन्ह अधिकार ही