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मिललइ जुलुम के जोर / जयराम दरवेशपुरी
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ठलकल
नयनमां के कोर हे धानी
पोछिला अँचरवा से लोर
कपसि रहल तोर
मन के सपनमा
पूरन होतो अब
मन अरमनमां
देखऽ, बिहुँसल किरिनियाँ के ठोर
बीतल जाहइ अब
दुखवा के दिनमां
हहरल दिनमां के
साजन सेनमां
अनहरजाल फारिअइतइ भोर
अइतइ समइया रांगल
अजगुत आला
छंटतइ इंजोरिया इंजोर
सुरूज सनेस शुभ
नित लेइ आवऽ हइ
हक अउ हकीकत के
ऊहे समझावऽ हइ
मिटतइ जुलुम के जोर।