भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मिललइ जुलुम के जोर / जयराम दरवेशपुरी

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:13, 11 जून 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जयराम दरवेशपुरी |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ठलकल
नयनमां के कोर हे धानी
पोछिला अँचरवा से लोर

कपसि रहल तोर
मन के सपनमा
पूरन होतो अब
मन अरमनमां
देखऽ, बिहुँसल किरिनियाँ के ठोर

बीतल जाहइ अब
दुखवा के दिनमां
हहरल दिनमां के
साजन सेनमां
अनहरजाल फारिअइतइ भोर

अइतइ समइया रांगल
अजगुत आला
छंटतइ इंजोरिया इंजोर

सुरूज सनेस शुभ
नित लेइ आवऽ हइ
हक अउ हकीकत के
ऊहे समझावऽ हइ
मिटतइ जुलुम के जोर।