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हम ही देश के किसान / जयराम दरवेशपुरी
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धरती के खोंचछवा के शान
भइया हो! हमनी ही देश के किसान
पालल जुअनियाँ के खेतवा जरइलूं
भूखल जिनगिया के लोर में दहइलूं
आहले ही रांगल बिहान
उभरल नस-नस बचले हे हड़िया
जान से पियारा हइ तइयो धरतिया
धुज-धुज अन्हरिया ले चान
टिटही हिहुँक उड़े छक्-छक् रउदवा
हाथ गोड़ चत सीझे भदवा के कदवा
अगहन पर लगल हे ध्यान
बरफ के हाही चले पूस माघ जड़वा
थरथर कँपऽ हइ सपना कपड़वा
पोवरा में घुसि-घुसि करऽ ही बिहान
उपजल बासमती रहरी मसुरिया
गहगह सरसो अउ नील-नील तिसिया
तइयो हइ मकइए परान
एकता बनावऽ भइया मजूर किसनमां
हमहीं बनइबइ देश के कनुनमां
दुसमन हो जइतइ चितान।