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ढ़ाह-ढूह देबउ किला के / जयराम दरवेशपुरी
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लड़लू हे लड़ते अइलूं हे
जुग-जुग के लंपट लीला से
रोटी हम्मर छीन तू लेमहीं
देखबउ रंगरूट रंगीला के
जब तक फूटल हलिअउ सूतर
तबले दाल गला लेलें
एकता आगू न´ कहियो तू
खोंटा सिक्का चला लेलें
तितकी नेस के हम जरइबउ
ढाह-ढुह देबउ किला के
मानऽ ही हम दुष्ट दुशासन
के मुट्ठी में हइ संसद
दिन दहाड़े लुटइवालन
के बूझऽ सब हइ वंशज
अब न´ बढ़इले देबउ आगू
समेंट सब रमलीला के
काको कोड़वा घोख रहलिअउ
तोरा पाठ पढ़ावइ ले
तोर सिलउटी पट्टी पर अब
नयका हरफ उगारइले
डंड बइठकी चलि रहलउ हे
फाने पारल डिल्ला के।