भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तिल के ताड़ बनावऽ हऽ / जयराम दरवेशपुरी

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:00, 12 जून 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जयराम दरवेशपुरी |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तिल के ताड़ बनावऽ हा
मजे में मौज उड़ावऽ हा

आल-जाल बड़ जानऽ हा
देवता-देवी मानऽ हा
भरम के चक्कर
चलवे खातिर
रंग बहुत तू बान्हऽ हा

अफसर आगू चमचा हा
गुंडा के बगल बच्चा हा
असमंगलिंग के
धंधा तोहर सच न´ कभी बतावऽ हा

ऊपर से तऽ नीक लगऽ हा
शुभ जतरा पर छींकऽ लगऽ हा
कायर भारी चिलरो डर से
उछल छलांग लगावऽ हा

चकमा देवे में आगू हा
मौका पर असली भालू हा
काम पड़े गिदरों के बाबा
कहि-कहि तुहीं हंुकावऽ हा।