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आग जी में लगल हे / जयराम दरवेशपुरी

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रहिया ताकऽ ही रोज, पिया आवऽ
आग जी में लगल हे मि़ंझावऽ!

बड़ जबड़ से हलो गइंठ जोड़ल
गेलो कइसे तोरा नेह तोड़ल
निठुर बन के न´ हमरा सतावऽ!

कोयली नियन कुहकऽ ही भोर में
सांझ बिहने मुँह धोवऽ ही लोर में
लोर से भींज अँखिया सुखावऽ!

लगे रात-दिन हमरा थरथरिया
बनल नागिन डंसऽ हे सेजरिया
अनमोल जिनगी न´ अब तूं जरावऽ!

भिनसरे कउआ के बोली में आहट
दिन भर होवइत रहऽ ही घर-बाहर
अंग बामा लगल पकड़ावऽ!