भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हँसुआ हम्मर गुमान / जयराम दरवेशपुरी

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:15, 12 जून 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जयराम दरवेशपुरी |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अमन-चमन के राग भरल हे
जन-जन के अरमान
भइया हँसुआ हमर गुमान
जोत-कोड़ बंजर धरती पर
लहलइ फसिल उगइलूं
सुदखोरवा चंडाल महाजन
सुन हिसाब घबरइलूं
आगू बढ़के धरऽ नरेटी जे भारी सइतान
आन्ही-पानी सब सहऽ ही
दिन दोपहरिया खटके
उपजल बरल कमाल हमर ले
भागे रोज झपट के मीठ जहर
जालिम के गरदन रेत के लेल जान
खेत रहे कि खरिहानी
अउ खान रहे करखाना
पसर के बइठल हे तोंदू मल
सगरे बन मस्ताना
जन-जन ओझरावे ले तोर
चलबइ तीर कमान
पजल जे चमचम धार हकइ
दुश्मन ले तलवार हकइ
जमाखोर सुदखोर के खातिर
दहकल ई अंगार हकइ
सब भटकल के आश हे ईहे
छिटकल पुनियाँ चान।